अमित शर्मा की कविता: मैं मुसाफ़िर हूँ, इश्क़ चलने से रखता हूँ रास्तों से नहीं। जिसे मिल जाए इश्क़, वो शाह हो जाए इस ख़ूबसूरत अफ़साने का गवाह हो जाए। आज में आपके साथ “Amit Sharma Poetry in Hindi – अमित शर्मा की कविता” अमित शर्मा की कुछ कविताये साँझा कर रहा हु | जिसे आप अपने मित्रो और साथियो के साथ आसानी से साँझा कर सकते है
मैं, मैं नहीं हूँ।
रेशा रेशा
पानी पानी
धुआँ धुआँ
हवा हवा
मैं, मैं नहीं हूँ
ख़्वाब हूँ
जो सबके होते हैं
अधूरे, पूरे, उधारी के
रात के, दिन के, पहरेदारी के
उलझा हुआ कोई तारा हूँ
जिसके चाँद की ख़बर नहीं कोई
वो खो गया है
ज़मीन पर बिखरी हज़ार
चांदी की थालियों के दरमियाँ कहीं
रेत हूँ किसी सूखे समंदर का
जो हवा के साथ कुछ कुछ
हवा सा हो गया है
मेरा कुछ कुछ तुम सा हो गया है
मैं धुंध हूँ सर्द सुबह की
या किसी प्रेमी जोड़े के बीच
सुलगते मद्धम अलाव की
मेरे एक हिस्से में
जहाँ दिल होता है
कुछ जम सा गया है
मैं, मैं नहीं हूँ
पानी हूँ, खारी किसी नदी का
जो अपनी ही प्यास में तड़प रही है
ख़ुद को दोहरा रहा हूँ अब
या पहले से आगे बढ़ गया हूँ
इस सवाल की गहराई में
शायद फंस सा गया हूँ
मुझे रेत से, ज़मीन से, पानी से, हवा से
इश्क़ हो गया है,
मुझे मेरे होने का ज़रा सा इल्म हो गया है
मैं हूँ सब
बस वो नहीं, जिसका तुझे यकीन हो गया है।
तस्वीर
मैं किसी रोज़ एक तस्वीर बनाऊँगा,
समुंदर पर थिरकती एक लड़की की तस्वीर
गले पर जिसके गुदा होगा रूमी
और कलाई पर बंधा होगा इश्क़
पैरों से वो अपने चाँद उकेरेगी पानी पर
और तस्वीर के ख़त्म होते तक
वो ओक लगाकर पी जाएगी पूरा समुंदर
मैं ज़ोर से चिल्लाऊंगा अमृता
और वो अनुसना कर देगी
तभी यकायक मेरी नज़र पड़ेगी उसके गले पर
आह रूमी!!
वो मुड़कर अपने बाल समेटते हुए
देखेगी मेरी तरफ़
और फिर चलने लगेगी शून्य की तरफ़
मेरे कैनवास पर फिर ना सुमंदर होगा न वो लड़की।
नायिका
मेरी कहानी की नायिका
जब होली दहन होते देखती है
तो भरी आवाज़ में कहती है
इस साल होली ठंडी है
इससे ज़्यादा आग तो यहाँ है
और अपना सीना ठोकती है
नायक बात को अनसुना करते हुए
होली के तेज़ में उसकी
सिलवेट वाली तस्वीर खींचता है
उसे लगता है वो जानता है सब
ये जो हो रहा है वो भी
और जो होने वाला है वो भी
या यूँ भी कह सकते हैं कि सिर्फ उसे ऐसा लगता है
उसे नायिका की भारी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती
नायक को लगता है वो सूत्रधार है कहानी का
और तभी यकायक नायिका के सीने की आग
उसकी आँखों के ज्वालामुखी से फूटने लगती है
नायक हक्का बक्का रह जाता है
ये उसकी समझ से परे है
नायिका अपने हाथों में चेहरा छुपाये
पूरी आग उड़ेल देती है बाहर
नायक उसे थामने की कोशिश करता है
पर आग को थामना मुमकिन कब है
पीछे होली अब भी जल रही है
यहाँ ज्वालामुखी उफ़ान पर है
अब कहानी का सूत्रधार नायिका है
पर मेरा सवाल है ये कहानी किसकी थी!!
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