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Rani Laxmi Bai History – रानी लक्ष्मी बाई इतिहास हिंदी में
जब झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई को इसके विषय में पता चला तो वह रो पड़ी और उन्होंने कहा – ‘मैं झाँसी को नहीं दूँगी’। उसके बाद महारानी लक्ष्मी बाई ने लन्दन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया पर उनके मुक़दमे को खरीच कर दिया गया। उसके बाद उन्हें 60,000 रुपए का पेंशन दिया गया और राज महल को छोड़ कर रानी महल में रहने का आदेश दिया गया।परन्तु उसके बाद भी रानी लक्ष्मी बाई ने झाँसी को ईस्ट इंडिया कंपनी को ना देने का संकल्प लिया और वो अपना सेना संगठित करने लगी। साथ ही उन्होंने अपने राज्य का उत्तरदायित्व भी संभाला।रानी लक्ष्मी बाई घुड सवारी में निपूर्ण थी और उन्होंने महल के बीचों बिच घुड सवारी के लिए जगह भी बनाया था। उनके घोड़ों के नाम थे – सारंगी, पवन, और बादल। सन 1858 के समय किले से निकलने में घोड़े बादल की अहम भूमिका थी।
झाँसी के महल को ना छोड़ने के कारण झाँसी ब्रिटिश शासन के लिए विद्रोह का केंद्र बिंदु बन गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी किसी भी तरह झाँसी के महल, किले पर कब्ज़ा करना चाहती थी। रानी लक्ष्मी बाई इस बात को पहले से ही जानती थी इस लिए उन्होंने अपनी मजबूत सेना तैयार करनी शुरू कर दी थी। इस देना में महिलाओं को सेना में लिया गया था और उन्हें भी युद्ध के लिए तलवारबाज़ी, घुड सवारी का प्रशिक्षण दिया गया था।
Rani Laxmi Bai in hindi – रानी लक्ष्मी बाई इतिहास हिंदी में
झाँसी का पहला ऐतिहासिक युद्ध 23 मार्च , 1858 को शुरू हुआ था। झाँसी की रानी के आज्ञानुसार कुशल तोपची गुलाम गौस खां ने तोपों से ऐसे गोले फेंके कि अंग्रेजी सेना बुरी तरह से हैरान हो गई। रानी लक्ष्मीबाई ने लगातार सात दीनों तक अंग्रेजों से अपनी छोटी सी सेना के साथ बहुत बहादुरी से सामना किया था।
रानी जी ने बहुत बहादुरी से युद्ध में अपना परिचय दिया था। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर कसकर अंग्रेजों से युद्ध किया था। युद्ध का इतने दिन तक चलना असंभव था। रानी लक्ष्मी बाई का घोडा बहुत बुरी तरह से घायल था जिसकी वजह से उसे वीरगति प्राप्त हुई लेकिन तब भी उन्होंने अपनी हिम्मत नहीं हारी और अपने साहस का परिचय दिया।
कालपी पहुंचकर रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे ने एक योजना बनाई जिसमें नाना साहब, मर्दनसिंह, अजीमुल्ला आदि सभी ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। रानी लक्ष्मीबाई और उनके साथियों ने ग्वालियर पर आक्रमण कर वहाँ के किले पर अपना शासन जमा लिया।
Veerangna Rani Laxmi Bai in hindi – वीरंगना रानी लक्ष्मी बाई
गंगाधर राव निवालकर 1838 में झाँसी के राजा बने थे। गंगाधर राव विधुर थे। मनुबाई का विवाह गंगाधर राव निवालकर से सन् 1842 में हुआ था। विवाह के बाद मनुबाई का नाम लक्ष्मीबाई रखा गया था। रानी लक्ष्मी बाई 18 वर्ष की आयु में एक पत्नी बनी और 24 वर्ष की आयु में एक विधवा रानी बनी थीं।विवाह के पश्चात 1851 में रानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पुत्र के जन्म की ख़ुशी में पूरी झाँसी में खुशियाँ मनायी जाने लगीं।
लेकिन जन्म से चार महीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई जिसकी वजह से मनुबाई , गंगाधर राव और पूरी झाँसी बहुत बड़े शोक सागर में डूब गई लेकिन इतना सब होने के बाद भी रानी लक्ष्मी बाई ने हार नहीं मानी। राजा गंगाधर राव को पुत्र मृत्यु से बहुत गहरा धक्का लगा जिससे वे कभी उभर ही नहीं पाए और आखिर में 21 नवम्बर , 1853 में उनकी मृत्यु हो गई।
Rani Laxmi Bai in hindi Pictures – Rani Laxmi Bai par kavita in hindi
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Rani Laxmi Bai par kavita in hindi – रानी लक्ष्मी बाई इतिहास हिंदी में
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
Rani Laxmi Bai in hindi Slogan – Rani Laxmi Bai par kavita in hindi
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
” बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया |
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया ||
फौरन फौजे भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया |
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया ” ||
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
आज भी उनकी वीरता के गीत गाये जाते है-
” बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी ”.