किसान दिवस पर कविता: भारतीय किसान दिवस प्रत्येक वर्ष 23 दिसंबर को मनाया जाता है | ये दिवस भारत देश के पांचवे प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान में मनाया जाता है | वैसे तो चरण सिंह जी का कार्यकाल ज्यादा लम्बा तो नहीं था लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में किसानो के लिए बहुत सी नीतिया बनायीं थी | जो की किसानो के लिए एकजुट होने का काम करता है | उनका ही अनुसरण था ” जय जवान जय किसान ” | आज में आपके सामने इस पोस्ट “भारतीय किसान दिवस पर हिन्दी कविता, किसान दिवस पर कविता, Poem on National Farmer Day in Hindi, kisaan Diwas par Kavita 2018” के माध्यम से किसानो पर कविता शेयर कर रहा हु |
प्रत्येक वर्ष देश के हर राज्य में इस दिवस को बड़े ही उत्साह पूर्वक बनाया जाता है और खासकर जिन राज्यों में कृषि काफी अच्छी मात्रा में होती है वहा ये दिवस किसी त्यौहार से कम नहीं है | अगर देखा जाये तो भारत में आधी से ज्यादा आबादी कृषि पर ही आधारित है |
भारतीय किसान दिवस पर हिन्दी कविता
किसान – मेरे सवालों का जवाब ?
सारे देश के लिए अनाज पैदा करता ।
ना किसी तगमे की उम्मीद ,
ना किसी से फ़रियाद करता ।
सब मेरे साथ धोखा ही करते ,
मैं फिर भी सभी पे विश्वास ही करता ।
खेत में अगर मै मर भी जाऊँ ,
तो मेरी मानसिक हालत पर सवाल उठता ।
लेख भी तुम्हारे , लेखक भी तुम्हीं ,
इतिहास भी तुम्हीं लिखवाते ,
तो मेरा सही ज़िक्र भी कहा से होता ।
किसान दिवस पर कविता
धरा का चीरकर सीना, नये अंकुर उगाता है
उगाकर अन्न मेहनत से, हमें भोजन खिलाता है
सदा जिसने मिटाई भूख, जन जन की जहाँ भर की
वही हलधर अभावों में, गले फाँसी लगाता है।
कड़कती सर्दियों में धूप में, काली घटाओं में
लड़े अड़ जाये दुष्कर, आसमानी आपदाओं में
कभी जो हार ना माने, नतीजा चाहे जो भी हो
वही फिर टूट जाता, हार जाता है अभावों में
ज़रा सोचो तरक्की से, सियासत से क्या पाओगे
अगर ये ना उगाएँगे, तो क्या तुम ख़ुद उगाओगे
अभी भी वक़्त हम जाग जायें, इससे पहले कि
ये खेती छोड़ बैठे तो, क्या खाओगे-खिलाओगे
Poem on National Farmer Day in Hindi
कई मन की शिलाओं को, जो ज़िद से ठेल देती है
नमन उस यौवना को है, जो हल से खेल लेती है
हो महीना जेठ का या पूस का, सब एक जैसे हैं
ये बेटी हैं किसानों की, कठिन श्रम झेल लेती है
मधुर झंकार पायल की उसे ना, रास आती है
नहीं ऐसा कि सजना ओ संवरना, भूल जाती है
नहीं ख़्वाबों में उग जायेगा दाना, जानती है वो
वो सपनों को भिगोकर, खेत में उड़ेल देती हैं
पसीना ओस बनकर पत्तियों पर, जब चमकता है
फ़सल आती है जब हर कोंपलों पर, फूल खिलता है
सजीले ख़्वाब आँखों में हिंडोले बन, उमड़ते हैं
अभावों से वो ख़्वाबों से, ख़ुशी से खेल लेती है।
Kisaan Diwas par Kavita 2018
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जो व्याकुल बच्चों के चेहरे, देख-देख अकुलाता है
मौसम और महाजन के, जुल्मों से तंग हो जाता है
जिस ललाट के स्वेद रक्त से, धरती तर हो जाती है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
कसी हुईं बाजू मज़बूत, हथेली में बल रखता है
एक हाँथ में डोर बृषभ की, काँधे पर हल रखता है
कड़ी धूप में तिल तिल जलकर, होम वहीं हो जाता है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
रस्म रिवाज़ों की ख़ातिर, जो कर्जे में दब जाता है
बीमारी में आज भी उसको, हाँथ फैलाना पड़ता है
सबकी भूख मिटाने वाला, ख़ुद भूखा रह जाता है
भारत में अब तक यारो, वो ही किसान कहलाता है।
भारतीय किसान दिवस पर हिन्दी कविता 2018
पेट जो भरता लोगों का
मिट्टी से फसल उगाता है,
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
आलस जरा न तन में रहे
कोई डर न मन में रहे
जितनी भी मुसीबत पड़ती है
बिन बोले वो चुपचाप सहे,
बस परिवार की खातिर ही
वो रहता मुस्कुराता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
न धूप सताए दिन की उसे
न काली रात डराती है
डटा रहे हर मौसम में
जब तक न फसल पक जाती है,
सूरज के उठने से पहले
वो पहुँच खेत में जाता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
मेहनत करता है पूरी और
संयम भी बांधे रहता है
बोझ जिम्मेवारियों का
उसके काँधे ही रहता है,
कभी वक्त की ऐसी मार पड़े
वो भूखा ही सो जाता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
न जाने उसकी किस्मत को
कैसे है रचता विधाता
आज तो है कर्जदार हुआ
भारत का अन्नदाता,
मजबूरी में बेबस हो कर वो
फांसी को गले लगाता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
जो सेहत देता दूजों को
खतरे में उसकी जान है क्यों?
सबकी पूरी करे जरूरत
अधूरे उसके अरमान हैं क्यों?
पूरा मूल्य मिले मेहनत का
बस इतना ही तो वो चाहता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
पेट जो भरता लोगों का
मिट्टी से फसल उगाता है,
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
किसान पर हिन्दी कविता
लिखता मैं किसान के लिए
मैं लिखता इंसान के लिए
नहीं लिखता धनवान के लिए
नहीं लिखता मैं भगवान के लिए
लिखता खेत खलियान के लिए
लिखता मैं किसान के लिए
नहीं लिखता उद्योगों के लिए
नहीं लिखता ऊँचे मकान के लिए
लिखता हूँ सड़कों के लिएलिखता मैं इंसान के लिए
क़लम मेरी बदलाव बड़े नहीं लाई
नहीं उम्मीद इसकी मुझे
खेत खलियान में बीज ये बो दे
सड़क का एक गढ्ढा भर देती
ये काफ़ी इंसान के लिए
लिखता हूँ किसान के लिए
लिखता मैं इंसान के लिए
आशा नहीं मुझे जगत पढ़े
पर जगत का एक पथिक पढ़े
फिर लाए क्रांति इस समाज के लिए
इसलिए लिखता मैं दबे-कुचलों के लिए
पिछड़े भारत से ज़्यादा
भूखे भारत से डरता हूँ
फिर हरित क्रांति पर लिखता हूँ
फिर किसान पर लिखता हूँ
क्योंकि
लिखता मैं किसान के लिए
लिखता मै इंसान के लिए