सावन का महीना हिन्दू पुराणों में बहुत ही शुभ महीना मन जाता है | बहुत सी महिलाये सावन के सोमवार को व्रत रखती है | और लोगो को मानना है की सोमवार के व्रत रखने से अच्छा वर मिलता है| इस पुरे महीने लोग महादेव की आराधना और पूजा अर्चना करते है | इसी महीने कावड़ का भी अपना अलग ही महत्व है तो आज में आपको इस पोस्ट Sawan ka mahina kavita aur shayari – सावन का महिना कविता और शायरी के माध्यम से इस महीने की कुछ शायरी कविता बताने जा रहे है | जिसे आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ शेयर करके इस महीने की शुभकामनाये और शुभेछा सन्देश दे सकते हो|
Sawan Ka Mahina Kavita – सावन का महिना कविता
आप sawan ka mahina song, sawan ka mahina mp3, sawan ka mahina song download, सावन का महीना कविता और शायरी, सावन का महिना कविता और शायरी, Sawan Ka Mahina Kavita aur Shayari , सावन का महीने की शुभकामनाये, सावन के महीने के सन्देश व्हाट्सप्प और फेसबुक पर यह से शेयर कर सकते है| साथ ही आप विश्व जनसंख्या दिवस पर स्पीच २०१८ भी देख सकते है |
उमड़-घुमड़ आए कारे-कारे बदरा
प्यार भरे नैनों में मुस्काया कजरा
बरखा की रिमझिम जिया ललचाए
भीग गया तनमन भीग गया अँचरा
सजनी आंख मिचौली खेले बांध दुपट्टा झीना
महीना सावन का
बिन सजना नहीं जीना महीना सावन का
मौसम ने ली है अंगड़ाई
चुनरी उड़ि उड़ि जाए
बैरी बदरा गरजे बरसे
बिजुरी होश उड़ाए
घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना
खेतों में फ़सलें लहराईं
बाग़ में पड़ गये झूले
लम्बी पेंग भरी गोरी ने
तन खाए हिचकोले
पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना
बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
महक उठी पुरवाई
मन की चोरी पकड़ी गई तो
धानी चुनर शरमाई
छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना
कजरी गाएं सखियां सारी
मन की पीर बढ़ाएं
बूंदें लगती बान के जैसे
गोरा बदन जलाएं
अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना
इस सावन में
Agar aap सावन का महिना कविता और शायरी, Sawan Ka Mahina Kavita aur Shayari, sawan ke mahine par shayari in hindi, sawan ke mahine par kavita in hindi dhund rhe hai. to aap yha se prapt kar sakte hai. Aur apne najdiki logo ke sath asani se share kar sakte hai.
इस सावन में
तन शीतल
मन निर्मल
हो जाए इस पावस में
नील गगन के काले बदरा
कुछ बरसो ऐसे सावन में
ताप से यूं झुलस गई है
मन की सूनी धरती
चटक न जाए कहीं, देखो
आस के नाजुक मोती
निर्झर बहती अश्रुधार को
मिल जाए बूंदों का संग
इसी बहाव पर पार कर लेंगे
जीवन की डगमग कश्ती
मन-आँगन धुल जाए
हर कोना पावन हो जाए
मुक्त करो हमको, हमसे
रहे न किसी बंधन में
नील गगन के काले बदरा
कुछ ऐसे बरसो सावन में !!
सावन के सुहाने मौसम में
खिलते हैं दिलों में फूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
होती है सभी से भूल सनम सावन के सुहाने मौसम में ।
यह चाँद पुराना आशिक़ है
दिखता है कभी छिप जाता है
छेड़े है कभी ये बिजुरी को
बदरी से कभी बतियाता है
यह इश्क़ नहीं है फ़िज़ूल सनम सावन के सुहाने मौसम में।
बारिश की सुनी जब सरगोशी
बहके हैं क़दम पुरवाई के
बूंदों ने छुआ जब शाख़ों को
झोंके महके अमराई के
टूटे हैं सभी के उसूल सनम सावन के सुहाने मौसम में
यादों का मिला जब सिरहाना
बोझिल पलकों के साए हैं
मीठी सी हवा ने दस्तक दी
सजनी कॊ लगा वॊ आए हैं
चुभते हैं जिया में शूल सनम सावन के सुहाने मौसम में !!
मन एकाकी आज
चहुँ ओर प्रकृति का आह्लाद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
प्राची का अरुणिम विहान
नव किसलय का हरित वितान
रुनझुन-रुनझुन वायु के स्वर
नीड़-नीड़ में मुखरित गान
लहर-लहर बिम्बित उन्माद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
बदली की रिमझिम फुहार
कोयल गाये मेघ मल्हार
तितली का सतरंगी आँचल
भँवरों की मीठी मनुहार
झरनों का कल-कल निनाद
फिर क्यों मन एकाकी आज?
अंजलि में भर लूँ अनुराग
त्यागूँ मन की पीर- विराग
किरणों की लड़ियों की माला
पहनूँ, गाऊँ जीवन-राग
छिपा कहीं वेदन-अवसाद
फिर भी मन एकाकी आज।
दूर पर अलकापुरी
मेघ गंभीर नदी पर यों झुका आकुल हुआ,
कूल मानो मिल गया उसकी असिंचित प्यास को
जब लगा नभ से बरसने प्यार ही जल धार में,
गंध व्याकुल कर गई मेरी विमूर्छित श्वास को
पंख लेकर कल्पना के मैं उड़ा उस लोक तक,
जब किसी बीते हुए आषाढ़ की सुधि आ गई
यक्षिणी की देह-वल्ली तृप्त हो रस धार से,
मेघ-से अपने पिया का गूढ़ चुंबन पा गई
एक विद्युत-सी छिटकती देह के आकाश से,
स्पर्श से जन्मे पुलक के झनझनाते राग-सी
बूँद भी प्यासी स्वयं थी पी रही थी रूप को
मेंह से जो और भड़की वह सुनहली आग थी
यक्ष शापित रामगिरि का पर उपेक्षित ही रहा,
झिलमिलाती स्वप्न-सी है दूर पर अलकापुरी
पोंछते हैं अश्रु ही उसकी प्रिया के चित्र को,
सिसकियों में डूब जाता गीत उसका आखिरी
फूल धर कर देहरी पर गिन रही जो रात-दिन,
आँख में तिरती रही वह शिशिर-मथिता पद्मिनी
मलिनवसना हो गई ज्यों चंद्रिका बिंबाधरा,
भटकती सुनसान में ज्यों एक क्षमा रागिनी !!
Sawan Ka Mahina Shayari – सावन का महिना शायरी
बनके सावन कहीं वो बरसते रहे
इक घटा के लिए हम तरसते रहे
आस्तीनों के साये में पाला जिन्हें,
साँप बनकर वही रोज डसते रहे
मुझे मालूम है तूमनें बहुत बरसातें देखी है,
मगर मेरी इन्हीं आँखों से सावन हार जाता है…
वे तुम्हारे अच्छे दिन होते हैं
जब बारिश होती है
तुम्हें कालेज नहीं जाना पड़ता
तुम अपने खाली फ्रेम पर
काढ़ती हो स्वप्न
अनगिनत कल्पनाओं में
खो जाती हो
विजन शुष्क आँचल हरा हो, हरा हो,
जवानी भरी हो सुहागिन धरा हो,
चपलता बिछलती, सरलता शरमती,
नयन स्नेहमय ज्योति, जीवन भरा हो!
उमड़ते-गरजते चले आ रहे घन
घिरा व्योम सारा कि बहता प्रभंजन,
अंधेरी उभरती अवनि पर निशा-सी
घटाएँ सुहानी उड़ी दे निमंत्रण!
कृषक ने पसीने बहाये नहीं थे,
नवल बीज भू पर उगाये नहीं थे,
सृजन-पंथ पर हल न आए अभी थे
खिले औ’ पके फल न खाए कहीं थे!
चमके बिजुरिया मोरी निंदिया उड़ाए
याद पिया की मोहे पल पल आए
मैं तो दीवानी हुई साजन की
बरसे बदरिया सावन की
Sawan Ka Mahina Kavita aur Shayari – सावन का महिना कविता और शायरी
मेघराज तुम पहली बार आए थे
तब धरती जल रही थी विरह वेदना में
और तुम बरसे इतना झमाझम
कि उसकी कोख हरी हो गई
जीवित है वह सब
स्मरण-शक्ति में मेरी!
ज्यों-ज्यों बढ़ती उम्र गई
बारिश से घटता गया लगाव,
न वैसा उत्साह रहा न वैसा चाव,
तटस्थ रहा, निर्लिप्त रहा!
महक रहा है सखी मन का अँगनवा
आएंगे घर मोरे आज सजनवा
पूरी होगी आस सुहागन की
बरसे बदरिया सावन की
क़दम क़दम पर सिसकी और क़दम क़दम पर आहें;
खिजाँ की बात न पूछो सावन ने भी तड़पाया मुझे!
बारिश की सुनी जब सरगोशी
बहके हैं क़दम पुरवाई के
बूँदों ने छुआ जब शाख़ों को
झोंके महके अमराई के
टूटे हैं सभी के उसूल सनम सावन के सुहाने मौसम में।