Skip to content
Hindi Kavita Shayari

Hindi Kavita Shayari

Collection of Shayari and Poems

Hindi Kavita Shayari

Hindi Kavita Shayari

Collection of Shayari and Poems

  • Essay
  • Hindi Status
  • Kavita
  • Shayari
  • Wishes
  • Quotes
  • Essay
  • Hindi Status
  • Kavita
  • Shayari
  • Wishes
  • Quotes
Home>>history>>बनारस पर कविता – Poem on Banaras in Hindi
बनारस पर कविता - Poem on Banaras in Hindi
historyKavita

बनारस पर कविता – Poem on Banaras in Hindi

Hindi Kavita ShayariAugust 7, 2020 13371 Views0

बनारस पर कविता: इस पौराणिक नगरी का वाराणसी नाम बहुत ही पुराना है, जिसका उल्लेख मत्स्य पुराण, शिव पुराण मे भी मिलता है, किन्तु लोकोउच्चारण मे यह ‘बनारस’ नाम से प्रचलित था, जिसे ब्रिटिश काल मे ‘बेनारस’ कहा जाने और अतंतः 24 मई 1956 को शासकीय रुप से पुनः इसे वराणसी कर दिया गया। आज में आप लोगो के साथ सबसे पुराने शहर या फिर यो कहा जाये की महाशमशान की भूमि काशी पर कुछ कविता शेयर कर रहा हु | आशा करता हु ये पोस्ट बनारस पर कविता, Poem on Banaras in Hindi, वाराणसी पर कविता, काशी पर कविता, मणिकर्णिका का घाट यही है आपको पसंद आएगी |

वाराणसी नाम संभवतः इसे वरूणा और अस्सी इन दो स्थानीय नदियों के नाम पर मिला हुआ होगा, जो क्रमशः उतर और दक्षिण मे गंगा नदी से मिलती हैं। एक मान्यता यह भी है कि वरुणा नदी को प्राचीन काल मे वाराणसी कहा जाता था, जिसके कारण इस शहर को यह नाम मिला, लेकिन यह विचार ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं। बनारस पर कविता

बनारस पर कविता - Poem on Banaras in Hindi
बनारस पर कविता, Poem on Banaras in Hindi

बनारस पर कविता – वाराणसी पर कविता

इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियां
आदमी दशाश्वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आंखों में
एक अजीब-सी नमी है
और एक अजीब-सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन
तुमने कभी देखा है
खाली कटोरों में वसंत का उतरना!
यह शहर इसी तरह खुलता है
इसी तरह भरता
और खाली होता है यह शहर
इसी तरह रोज-रोज एक अनंत शव
ले जाते हैं कंधे
अंधेरी गली से
चमकती हुई गंगा की तरफ

इस शहर में धूल
धीरे-धीरे उड़ती है
धीरे-धीरे चलते हैं लोग
धीरे-धीरे बजते हैं घंटे
शाम धीरे-धीरे होती है
यह धीरे-धीरे होना
धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय
दृढ़ता से बांधे है समूचे शहर को
इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं है
कि हिलता नहीं है कुछ भी
कि जो चीज जहां थी
वहीं पर रखी है
कि गंगा वहीं है
कि वहीं पर बंधी है नाव
कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊं
सैकड़ों बरस से

कभी सई-सांझ
बिना किसी सूचना के
घुस जाओ इस शहर में
कभी आरती के आलोक में
इसे अचानक देखो
अद्भुत है इसकी बनावट
यह आधा जल में है
आधा मंत्र में
आधा फूल में है
आधा शव में
आधा नींद में है
आधा शंख में
अगर ध्यान से देखो
तो यह आधा है
और आधा नहीं भी है
जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्तंभ के
जो नहीं है उसे थामे है
राख और रोशनी के ऊंचे-ऊंचे स्तंभ
आग के स्तंभ
और पानी के स्तंभ

धुएं के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी एक टांग पर खड़ा है यह शहर
अपनी दूसरी टांग से
बिलकुल बेखबर!

Poem on Banaras in Hindi – Poem on Kashi in Hindi

बनारस पर कविता - Poem on Banaras in Hindi

मैं ईश्क कहूँ, तू बनारस समझे…”
मैं गंगा सी निर्मल, बहती निरंतर
तू पत्थर वो अस्सी घाट का,
मैं शीतल साहिल की रेत सी तर
और तू चाँद वो ठण्डी रात का…
मैं काशी की गलियों सी मग्न हर-पल
तू देखता मुझे शांत उस शाम सा,
मैं कुण्ड की लिए खूबसूरती खुद में
तू लगता महादेव के भाँग सा…
मैं बारिश के बाद की वो सोंधी खुश्बू
तू कुल्हड़ वाली दो घूंट चाय सा,
मैं मंदिर पे रंगे उस गेरूए सी
तू लिए रंग वो नुक्कड़ के पान सा…
मैं दशाश्वमेध की संध्या-आरती
तो तू सुबह-ए-बनारस उस घाट का,
मैं जैसे जायका वो चटपटे चाट की
तू खट्टे लस्सी की हल्की मिठास सा…
मैं संगमरमर वो मानस मंदिर की
तू इनमें पड़े उस स्लेटी धार सा,
मैं हाथों से जिसे पढ़ते गुजरती
तू लगता वही उभार किसी दीवार का…
मैं जैसे देव-दीपावली की जगमगाती कशिश
और तू इसकी तरफ डोर कोई खिंचाव का,
मैं तैरते-जलते दीपों सी उज्ज्वल
और तू इन्हें लहराता जैसे कोई बहाव सा…
मैं अंधियारे की वो पीतल सी रौशनी
तू किनारे ठहरा एक मुसाफिर अंजान सा,
मैं पंचगंगेश किनारे की वो मस्जिद
और तू जैसे निकलता उससे अजान सा…
मैं मन्नत किसी बंजारे की
तो तू दुआ है कोई मुकम्मल सा,
मैं मंदिर में पेड़ वो बरगद सी
और तू धागा जैसे कोई मलमल का…
मैं उभरती-मचलती कड़ी जिस राज़ की
तू मुझमें राबता लिए उस एहसास का,
मैं दुर्गा-मंदिर के श्रीफल का पानी
और तू कयास जैसे कोई प्यास का…
मैं लहरों सी उठती-गिरती प्रतिपल
तू लगता इस बीच नौका-विहार सा,
हू मणिकर्णिका की अगर मैं गाथा
तो तू लगता जीवन-मरण के सार सा…
मैं सपनो को समेटे हुए एक परिधि
तू मुझे मुझसे मिलाता एक व्यास सा,
मानो अगर काशी जैसी मुझे कोई नगरी
तो तू है बसता इस नगर में जान सा…

शहर बनारस पर कविता – मणिकर्णिका घाट (Poem on Banaras in Hindi)

manikarnika ka ghat yhi hai

यह चिता नहीं, यह काया थी
जो भस्म हुई बस माया थी
मोह मिथ्या का उचाट यही है
मणिकर्णिका का घाट यही है
यहीं चिता में इच्छा सोती है
यहीं ‘दीप्त’ आत्मा होती है
जब सौभाग्य तुझे बुलाएगा
देखना तू भी काशी आएगा
पापों का बोझ निगलती है
यह शुद्ध अनामय करती है
अग्नि का स्पर्श जैसे पारस
गंगा और ये शहर ‘बनारस’
इच्छा केवल एक करूँ मैं
मरना जब हो यहीं मरूँ मैं
गंगा किनारे पड़ी हो जो
उसी ‘राख़’ का ढेर बनूँ मैं
भ्रमजाल सभी हट जाएंगे
इस नगरी में मिट जाएंगे
फिर बयार मोक्ष की आएगी
अस्तित्व अमर कर जाएगी
सनातन मैं कहलाऊंगी
अविरल मैं रह जाऊँगी
‘वेग’ मेरा अटल रहेगा
मैं गंगा में बह जाऊँगी…
तट पर सजे हैं पुंज भस्म के
जैसे शिव का ललाट यही है
मणिकर्णिका का घाट यही है’

बनारस पर कविता – Poem on Banaras in Hindi

बनारस पर कविता - Poem on Banaras in Hindi

मैं मूरत होऊँ जिस मंदिर की
तुम उसका कोई कपाट बनो
मैं होऊँ शाम बनारस की
तुम गंगा आरती घाट बनो
मैं कोई किनारा हो जाऊँ
तुम बनकर नदी कोई बहना
जब डूबूँ साँझ को सूरज सा
तुम मेरी लाली में रहना
मैं कोई गोताखोर बनूँ
तुम सिक्का एक का हो जाना
जब बहूँ किसी पुरवाई सा
आग़ोश में मेरी सो जाना
मैं कोई रेशम का कीड़ा
तुम मुझसे निकला पाट बनो
मैं होऊँ शाम बनारस की
तुम गंगा आरती घाट बनो
मैं गंगा नदी कुलीन पवित्र
तुम होना अविचल विश्वनाथ
मैं हो जाऊँ जब गौतम बुद्ध
तुम बनना ज्ञान का सारनाथ
मैं मणिकर्णिका घाट बनूँ
तुम बनना राख किसी तन की
सारे कर्मों का एक चरण
हो जाना निर्मय जीवन की
मैं नृत्य करूँ नटराज सा जब
तुम शिव तांडव का पाठ बनो
मैं होऊँ शाम बनारस की
तुम गंगा आरती घाट बनो
मैं जब चटकारा पान बनूँ
तुम कोई मुसाफिर हो जाना
मैं रस भरी रबड़ी बनूँगा जब
तुम घुलकर मुझमे खो जाना
मैं उत्तर से ‘वरुणा’ बन आऊँ
दक्षिण से तुम बन आना ‘असि’
मिलकर के दोनों पवित्र परम
बनाएंगे शहर ये वाराणसी
जहाँ ज्ञान, धर्म, इतिहास खड़ा
तुम शिव नगरी वो विराट बनो
मैं होऊँ शाम बनारस की
तुम गंगा आरती घाट बनो।
Share:

Previous Post

कारगिल विजय दिवस पर कविता – Poem on Kargil Vijay Diwas

कारगिल विजय दिवस पर कविता - Poem on Kargil Vijay Diwas

Next Post

विश्व ओजोन दिवस पर नारे – World Ozone Day Slogans in Hindi

विश्व ओजोन दिवस पर नारे - World Ozone Day Slogans in Hindi

Related Articles

गणतंत्र दिवस पर कविता इन हिंदी 2019 - Republic day Poem in Hindi Hindi StatusKavitaShayariWishes

गणतंत्र दिवस पर कविता इन हिंदी 2019 – Republic day Poem in Hindi

फादर्स डे पर कोट्स इन हिंदी - Fathers Day Quotes in Hindi 2019 फादर्स डे पर कविता इन हिंदी - Poems on Fathers Day in Hindi - Fathers Day par Kavita in Hindi Hindi StatusKavitaShayari

फादर्स डे पर कविता – पिता दिवस पर कविता – Poems on Fathers Day in Hindi – Fathers Day par Kavita in Hindi

Hindi Kavita Shayari Hindi StatusKavitaShayari

हिंदी कविता शायरी – Hindi Kavita Shayari By Ajay Pandey

Maharana Pratap in Hindi - Maharana Pratap History in Hindi EssayHindi StatusKavitaShayari

Maharana Pratap in Hindi – Maharana Pratap History in Hindi

Friendship Day Speech in hindi - फ्रेंडशिप डे स्पीच इन हिंदी EssayKavita

Friendship Day Speech in hindi – फ्रेंडशिप डे स्पीच इन हिंदी

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Top Posts & Pages

बनारस पर कविता - Poem on Banaras in Hindi
Suicide Status in Hindi - आत्महत्या पर स्टेटस इन हिंदी
Bewafa Shayari in hindi - Bewafa Shayari hindi mai
Top 5 Khatu Shyam Bhajan Lyrics in Hindi | खाटू श्याम जी भजन लिरिक्स
How to create Multi-lingual Website in HTML | Create Multilingual Website in HTML
अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस शायरी - International Dance Day Shayari in Hindi
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर भाषण- National Technology Day Speech in Hindi 2019
हिंदी कविता शायरी - Hindi Kavita Shayari By Ajay Pandey
World Population Day Shayari 2019: विश्व जनसंख्या दिवस शायरी 2019
How To Send Mail From Localhost XAMPP Using Gmail in Hindi
© 2023 Hindi Kavita Shayari | WordPress Theme Ultra Seven
  • Privacy Policy
  • Term and Services