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Home>>Kavita>>Amit Sharma Poetry in Hindi – अमित शर्मा की कविता
Amit Sharma Poetry in Hindi - अमित शर्मा की कविता
KavitaPoetry By Amit Sharma

Amit Sharma Poetry in Hindi – अमित शर्मा की कविता

Hindi Kavita ShayariJune 28, 2019 559 Views0

अमित शर्मा की कविता: मैं मुसाफ़िर हूँ, इश्क़ चलने से रखता हूँ रास्तों से नहीं। जिसे मिल जाए इश्क़, वो शाह हो जाए इस ख़ूबसूरत अफ़साने का गवाह हो जाए। आज में आपके साथ “Amit Sharma Poetry in Hindi – अमित शर्मा की कविता” अमित शर्मा की कुछ कविताये साँझा कर रहा हु | जिसे आप अपने मित्रो और साथियो के साथ आसानी से साँझा कर सकते है

मैं, मैं नहीं हूँ।

रेशा रेशा
पानी पानी
धुआँ धुआँ
हवा हवा
मैं, मैं नहीं हूँ
ख़्वाब हूँ
जो सबके होते हैं
अधूरे, पूरे, उधारी के
रात के, दिन के, पहरेदारी के
उलझा हुआ कोई तारा हूँ
जिसके चाँद की ख़बर नहीं कोई
वो खो गया है
ज़मीन पर बिखरी हज़ार
चांदी की थालियों के दरमियाँ कहीं
रेत हूँ किसी सूखे समंदर का
जो हवा के साथ कुछ कुछ
हवा सा हो गया है
मेरा कुछ कुछ तुम सा हो गया है
मैं धुंध हूँ सर्द सुबह की
या किसी प्रेमी जोड़े के बीच
सुलगते मद्धम अलाव की
मेरे एक हिस्से में
जहाँ दिल होता है
कुछ जम सा गया है
मैं, मैं नहीं हूँ
पानी हूँ, खारी किसी नदी का
जो अपनी ही प्यास में तड़प रही है
ख़ुद को दोहरा रहा हूँ अब
या पहले से आगे बढ़ गया हूँ
इस सवाल की गहराई में
शायद फंस सा गया हूँ
मुझे रेत से, ज़मीन से, पानी से, हवा से
इश्क़ हो गया है,
मुझे मेरे होने का ज़रा सा इल्म हो गया है
मैं हूँ सब
बस वो नहीं, जिसका तुझे यकीन हो गया है।

— Amit Sharma

तस्वीर

मैं किसी रोज़ एक तस्वीर बनाऊँगा,
समुंदर पर थिरकती एक लड़की की तस्वीर
गले पर जिसके गुदा होगा रूमी
और कलाई पर बंधा होगा इश्क़
पैरों से वो अपने चाँद उकेरेगी पानी पर
और तस्वीर के ख़त्म होते तक
वो ओक लगाकर पी जाएगी पूरा समुंदर
मैं ज़ोर से चिल्लाऊंगा अमृता
और वो अनुसना कर देगी
तभी यकायक मेरी नज़र पड़ेगी उसके गले पर
आह रूमी!!
वो मुड़कर अपने बाल समेटते हुए
देखेगी मेरी तरफ़
और फिर चलने लगेगी शून्य की तरफ़
मेरे कैनवास पर फिर ना सुमंदर होगा न वो लड़की।

— Amit Sharma

नायिका

मेरी कहानी की नायिका

जब होली दहन होते देखती है

तो भरी आवाज़ में कहती है

इस साल होली ठंडी है

इससे ज़्यादा आग तो यहाँ है

और अपना सीना ठोकती है

नायक बात को अनसुना करते हुए

होली के तेज़ में उसकी

सिलवेट वाली तस्वीर खींचता है

उसे लगता है वो जानता है सब

ये जो हो रहा है वो भी

और जो होने वाला है वो भी

या यूँ भी कह सकते हैं कि सिर्फ उसे ऐसा लगता है

उसे नायिका की भारी आवाज़ सुनाई नहीं पड़ती

नायक को लगता है वो सूत्रधार है कहानी का

और तभी यकायक नायिका के सीने की आग

उसकी आँखों के ज्वालामुखी से फूटने लगती है

नायक हक्का बक्का रह जाता है

ये उसकी समझ से परे है

नायिका अपने हाथों में चेहरा छुपाये

पूरी आग उड़ेल देती है बाहर

नायक उसे थामने की कोशिश करता है

पर आग को थामना मुमकिन कब है

पीछे होली अब भी जल रही है

यहाँ ज्वालामुखी उफ़ान पर है

अब कहानी का सूत्रधार नायिका है

पर मेरा सवाल है ये कहानी किसकी थी!!

Amit Sharma Poetry in Hindi, Amit Sharma Poetry in Hindi and Urdu, Poetry by amit sharma in hindi अगर आप लोग अमित शर्मा की और भी कविता या शायरी पढ़ना चाहते है | तो इन्हे फेसबुक, tumblr पर भी फॉलो कर सकते है

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