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Home>>Kavita>>कारगिल विजय दिवस पर कविता – Poem on Kargil Vijay Diwas
कारगिल विजय दिवस पर कविता - Poem on Kargil Vijay Diwas
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कारगिल विजय दिवस पर कविता – Poem on Kargil Vijay Diwas

Hindi Kavita ShayariJuly 17, 2020 1193 Views0

कारगिल विजय दिवस 2020: कारगिल विजय दिवस भारतवर्ष के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है | ये प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को बनाया जाता है | यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक लगातार चलता रहा और 26 जुलाई को इसका अन्त हुआ था | कारगिल युद्ध में पूरी दुनिया ने भारत की पराक्रमता देखी और भारतीय सेना ने अपना लोहा विश्वभर में मनवाया | 60 दिनों तक चले इस कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना पर विजय प्राप्त की | इसी के उपलक्ष्य में पूरा भारत ये दिवस कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाता है | आज में आपके साथ कारगिल विजय दिवस पर कविता, Poem on Kargil Vijay Diwas सांझा कर रहा हु | आशा करता हु आपको ये पोस्ट पसंद आएगी|

Kargil Vijay diwas poem in hindi

सेना का कर्तव्य, शत्रु को धूल चटाना।
जीत बने मंतव्य, देश की शान बढ़ाना।।

नव उपाय नित खोज, अगर हो धूल चटाना।
हो तैयारी रोज, चाहते शत्रु हराना।।

सजग रहें दिन रात, पलक तक मत झपकाना।
सैनिक यह की बात, समझता नहीं जमाना।।

जीते हर संग्राम, राष्ट्र पर आँच न आना।
बैरी का हर दाँव, हमेशा विफ़ल कराना।।

फौजी का यह ध्येय, जीत का ध्वज फहराना।
पूरा करने हेतु, शीश खुद का कटवाना।।

सर्वोपरि है राष्ट्र, मात्र यह शपथ उठाना।
दे कर निज बलिदान, कसम पूरी कर जाना।

गर्म सर्द हो रात, न आता है घबराना।
सीखी बस यह बात, विपद सम्मुख डट जाना।

आये कभी विपत्ति, सदा ढाढ़स बँधवाना।
बन फौलादी ढाल, मुसीबत से टकराना।।

भले युद्ध या शांति, सदा बढ़ आगे आना।
मानवता का साथ, हमेशा देते जाना।।

झंडे का सम्मान, करें सबसे करवाना।
जनगण मन का गान, हृदय से मिलकर गाना।

Poem on Kargil Vijay diwas in Hindi

कारगिल विजय दिवस पर कविता - Poem on Kargil Vijay Diwas

युद्ध में जख्मी सैनिक साथी से कहता है:
‘साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना!
इतने पर भी न समझे तो दो आंसू तुम छलका देना!!
यदि हाल मेरी बहना पूछे तो, सूनी कलाई दिखला देना!
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ दिखा देना !!
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक तुम झुका लेना!
इतने पर भी न  समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना!!
यदि हाल मेरे पापा पूछे तो, हाथों को सहला देना!
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना!!
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका सहला देना!
इतने पर भी न समझे तो, सीने से उसको लगा लेना!!
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना!
इतने पर भी न समझे तो, सैनिक धर्म बता देना!!

Poem on Kargil Vijay diwas

आरम्भ है प्रचंड,
बोले मस्तकों के झुण्ड,
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो

आन, बान ,शान या की जान का हो दान,
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो

मन करे सो प्राण दे जो,
मन करे सो प्राण ले जो,
वही तो एक सर्व शक्तिमान है
ईश की पुकार है, ये भागवत का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है

कौरवों की भीड़ हो,
या पांडवो का नीड हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है

जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या जिंदगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यों डरे
ये जाके आसमानो में दहाड़ दो

आरम्भ है प्रचंड ….

हो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो
या की पूरे भाल पर जल रहे विजय का लाल
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो
रंग केसरी हो या मृदुंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो

जिस कवि की कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो
भीगती नसों में आज, फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो

आरम्भ है प्रचंड ….

कारगिल विजय दिवस पर कविता

उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा

चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा

ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा

जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा

वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा

शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा

कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा

कारगिल विजय दिवस पर कविता 2020

हुआ देश आजाद तभी से , कश्मीर हमारे संग आया।
विभाजन से उपजे पाक को, उसका कृत्य नहीं भाया।

रंग बिरंगी घाटी कब से,पाक कि नज़र समाई थी।
कश्मीर को नापाक करने, कसम उसी ने खाई थी।

वादी पाने की चाहत में, सैंतालीस से जतन किया।
तीन युद्ध में मुंह की खाई, फिर से वही प्रयास किया।

बार बार वह मुँह की खाये, उसको शर्म न आनी थी।
छल प्रपंच करने की फितरत, उसकी बड़ी पुरानी थी।

दारा करे सीधे लड़ने में, अपनी किस्मत कोसा था।
आतंकी के भेष में उसने, भष्मासुर को पोषा था।

हूर और जन्नत पाने को, आतंकी बन आते थे।
भारत की सेना के हाथों, काल ग्रास बन जाते थे।

जन्नत को दोज़ख बनने में, कोई कसर न छोड़ी थी।
मासूमों को हथियार थमा, बिषम बेल इक बोई थी।

तभी शांति की अभिलाषा ले, अटल कि बारी आई थी।
जाकर जब लाहौर उन्होंने, सद इच्छा दिखलाई थी।

भाईचारे की मिसाल दे, छद्म युद्ध को रोका था।
पाकिस्तानी सेना ने फिर , पीठ में छुरा भोंका था।

सन निन्यानबे मई माह, फिर से धावा बोला था।
चढ़ कर करगिल की चोटी पर, नया मोरचा खोला था।

भारत की जाबांजो ने तब, उस पर कठिन प्रहार किया।
बैठे गीदड़ भेड़ खाल में, उनका तब संहार किया।

एक से एक दुर्गम चोटी को, वापस छीन के’ लाए थे।
देश कि खातिर माताओं ने, अपने लाल गंवाए थे।

तीन महीने चले युद्ध में,फिर से मुंह की खाई थी।
मिस एडवेंचर के चक्कर में, जग में हुई हंसाई थी।

आज मनाकर विजय दिवस हम, उसको याद करायेंगे।
ऐसी गलती फिर मत करना, नानी याद दिलायेंगे।
पाकिस्तानी सेना को किया परास्त
करो याद भारत के वीर जवानों को।
कारगिल की चोटी पर लहराया तिरंगा
उन देश भक्तों की कुर्बानी को।

दुश्मन के सैनिकों को मार गिराया
नाकामयाब किया उनकी चालों को।
श्रद्धा सुमन अर्पित उन साहसी
निडर भारत भूमि के लाडलों को।

बर्फ पर चलते दुश्मन को मार गिराते
रात जागते देश की रक्षा करने को।
आंधी हो तूफान हो या हो रेगिस्तान
याद करो उन वीरों की शहादत को।

देश के लोग सुकून से सोते रात भर
शत् शत् नमन ऐसे पहरेदारों को।
तब वह खाते अपने सीने पर गोलियां
भूलों नहीं ऐसे देश के रखवालों को

Short Poem on Kargil Vijay Diwas in Hindi

वतन की ख़ाक एड़िया रगड़ने दो,
मुझे यकीन है पानी यही से निकलेगा
इन्ही कुछ पंक्तियों से में कारगिल दिवस में सभी शहीदों को अपनी पूरी टीम की तरफ से श्रदांजलि अर्पित करता हु | आशा करता हु आप को यह पोस्ट कारगिल विजय दिवस पर कविता, कारगिल विजय दिवस, कारगिल विजय दिवस पर शायरी, Poem on Kargil Vijay Diwas, Poem on Kargil Vijay Diwas in Hindi, Kargil Vijay Diwas par Kavita in Hindi अच्छी लगेगी

कारगिल विजय दिवस पर कविता - Poem on Kargil Vijay Diwas

खौलता हुआ रगों में राणा व शिवाजी वाला,
लहू का उफान कभी चुकने न पायेगा ।

पन्नाधाय हाडा रानी का ये बलिदानी देश,
क़ुरबानी में कलेजा दुखने न पायेगा ।

शेखर, सुभाष, अशफाक की धरा है यहाँ,
क्रांति का प्रवाह कभी रुकने न पायेगा ।

सौ करोड़ जनता के दिल में लहरता ये,
लाडला तिरंगा कभी झुकने न पायेगा ।

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