Annie Besant in Hindi – एनी बेसेंट जीवनी

Annie Besant Biography in hindi - एनी बेसेंट जीवनी

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Annie Besant in Hindi – एनी बेसेंट जीवनी

Annie Besant Biography in hindi - एनी बेसेंट जीवनी

एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 में लंदन के एक मध्यम वर्गीय परिवार में एनी वुड के रूप में हुआ था । वह आयरिश मूल की थीं। जब वह केवल पांच साल की थीं तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। परिवार के पालन-पोषण के लिए एनी की मां ने हैरो में लड़कों के लिए एक छात्रावास खोला।बाल्यावस्था में पिता का निधन हो गया। अल्पायु में उन्होंने फ्रांस और जर्मनी की यात्रा की और वहां की भाषाएं सीखी। युवावस्था में उनका परिचय युवा पादरी रेवरेंड फ्रैंक से हुआ और उनसे उनकी शादी हो गई, लेकिन यह शादी टिक नहीं पाई और दोनों में तलाक हो गया।

सन् 1878 में उन्होंने पहली बार भारत के बारे में अपने विचार प्रकट किए। उनके विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति गहरा स्नेह उत्पन्न कर दिया। वे भारतीयों के बीच कार्य करने के लिए दिन-रात सोचने लगीं। सन् 1883 में वह समाजवादी विचारधारा के प्रति आकर्षित हुईं। उन्होंने लंदन में मजदूरों के पक्ष में सोशलिस्ट डिफेंस संगठन नामक संस्था बनाई।

एनी बेसेंट का विवाह 1867 में फ्रैंक बेसेंट नामक एक पादरी से हुआ था। परन्तु उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक नहीं चल सका और वे 1873 में क़ानूनी तौर पे अलग हो गए। एनी को विवाह के पश्चात दो संतानो की प्राप्ति हुई।

अपने पति से अलग होने के पश्चात एनी ने न केवल लंबे समय से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं बल्कि पारंपरिक सोचपर भी सवाल उठाने शुरू किये। उन्होंने ने चर्च पर हमला करते हुए उसके काम करने के तरीको और लोगों की जिंदगियों को बस में करने के बारे में लिखना शुरू किया। उन्होंने विशेष रूप से धर्म के नाम पर अंधविश्वास फ़ैलाने के लिए इंग्लैंड के एक चर्च की प्रतिष्ठा पर तीखे हमले किये ।

Annie Besant Quotes – एनी बेसेंट कोट्स

Annie Besant Biography in hindi - एनी बेसेंट जीवनी

1. Thought is just not something objective in our heads. Thought is power – real, objective power. Moreover, the thoughts we create have a life of their own. They have a kind of material reality that affects other people for good or ill – hence our responsibility to chose.

2. Control of the tongue! Vital for the man who would try to tread the Path, for no harsh or unkind word, no hasty impatient phrase, may escape from the tongue which is consecrated to service, and which must not injure even an enemy; for that which wounds has no place in the Kingdom of Love.

3. In concentration, the consciousness is held to a single image; the whole attention of the Knower is fixed on a single point, without wavering or swerving.

4. Sun-worship and pure forms of nature-worship were, in their day, noble religions, highly allegorical but full of profound truth and knowledge. Dr Annie Besant Information in Hindi

5. Against the teachings of eternal torture, of the vicarious atonement, of the infallibility of the Bible, I levelled all the strength of my brain and tongue, and I exposed the history ofAnnie Besant School the Christian Church with unsparing hand, its persecutions, its religious wars, its cruelties, its oppressions.

Bhagavad Gita had translated into English – भगवद्गीता का किया था अंग्रेजी में अनुवाद

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Annie Besant Biography in hindi - Annie Besant School

उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। जिसके कारण उन्हें भारत और मध्यम वर्गीय भारतियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कि ब्रिटिश शासन और इसकी शिक्षा की व्यवस्था से काफी पीड़ित थे। शिक्षा में उनकी लंबे समय से रूचि के फलस्वरूप ही बनारस के केंद्रीय हिन्दू विद्यापीठ की स्थापना हुई (1898)।

एनी बेसेन्ट एक समाज सुधारक के अलावा बेहतरीन लेखिका भी थीं। उन्‍होंने कई किताबे लिखीं। खासतौर से भगवद्गीता से उनका काफी लगाव था। उन्‍होंने इसका अंग्रेजी-अनुवाद भी किया और पुस्तकों के लिए प्रस्तावनाएँ भी लिखीं। उनके द्वारा ‘क्वीन्स हॉल’ में दिये गये व्याख्यानों की संख्या लगभग 20 होगी। उन्होंने भारतीय संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक सुधारों पर 48 ग्रंथों और पैम्फलेट की रचना की। भारतीय राजनीति पर लगभग 77 पुस्तकें लिखीं। उनकी मौलिक कृतियों में से चयनित 28 ग्रंथों का निर्माण हुआ। समय-समय पर ‘लूसिफेर’, ‘द कामनवील’ व ‘न्यू इंडिया’ के संपादन भी एनी बेसेन्ट ने किये।

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Dr Annie Besant Information in Hindi - एनी बेसेंट जीवनी

प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक राकेश सिन्हा ने कहा कि भले ही वह विदेशी महिला थीं लेकिन उन्होंने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया और यहां राष्ट्रवाद को गले से लगाया। दरअसल वह सभ्यता और राष्ट्रीयता को सहचर मानती थीं।

वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुईं और वर्ष 1916 में ‘होम रूल लीग’ जिसका उद्देश्य भारतीयों द्वारा स्वशासन की मांग था। सन 1917 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थीं। उन्होंने “न्यू इंडिया” नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसमे उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और इस विद्रोह के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। गांधी जी के भारतीय राष्ट्रीय मंच पर आने के पश्चात, महात्मा गांधी और एनी बेसेंट के बीच मतभेद पैदा हुए जिस वजह से वह धीरे-धीरे राजनीति से अलग हो गईं। हालांकि एक अंग्रेज के तौर पर भारत के पक्ष में खड़े होकर अंग्रेजों के खिलाफ ही लड़ना उनकी हिम्‍मत का परिचय था।

Dr Annie Besant Information in Hindi – डॉ॰ एनी बेसेन्ट के विचार

Annie Besant Biography in hindi - एनी बेसेंट जीवनी

डॉ॰ बेसेन्ट के जीवन का मूलमंत्र था ‘कर्म’। वह जिस सिद्धान्त पर विश्वास करतीं उसे अपने जीवन में उतार कर उपदेश देतीं। वे भारत को अपनी मातृभूमि समझती थीं। वे जन्म से आयरिश, विवाह से अंग्रेज तथा भारत को अपना लेने के कारण भारतीय थीं। तिलक, जिन्ना एवं महात्मा गाँधी तक ने उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की। वे भारत की स्वतंत्रता के नाम पर अपना बलिदान करने को सदैव तत्पर रहती थीं। वे भारतीय वर्ण व्यवस्था की प्रशंसक थीं।

परन्तु उनके सामने समस्या थी कि इसे व्यवहारिक कैसे बनाया जाय ताकि सामाजिक तनाव कम हो। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए। शिक्षा में धार्मिक शिक्षा का समावेश हो। ऐसी शिक्षा देने के लिए उन्होंने १८९८ में वाराणसी में सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की। सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए उन्होंने ‘ब्रदर्स ऑफ सर्विस’ नामक संस्था का संगठन किया।

Annie Besant in Hindi dies – एनी बेसेंट का निधन

Annie Besant Biography in hindi - एनी बेसेंट जीवनी

20 सितम्बर 1933 को अड्यार (मद्रास) में एनी बेसेंट का देहांत हो गया । उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अस्थियों को बनारस में गंगा में प्रवाहित कर दिया गया।

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